भोजन का अधिकार मामले में 2 मई 2003 को जारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (Particularly vulnerable tribal group या PVTG) के लोग अंत्योदय अन्न योजना कार्ड (Antyodaya Anna Yojana cards या AAY)) रखने को अधिकृत हुए. इस कार्ड के जरिए कम कीमत पर 35 किलो चावल खरीदा जा सकता है. वहीं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 (National Food Security Act 2013 या NFSA) को ध्यान में रखते हुए झारखंड सरकार ने डाकिया योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के घर तक अन्न पहुंचाया जाना है. बता दें कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सस्ते दर पर पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण खाद्य पदार्थ दिया जाना है. लेकिन सर्वे में पाया गया कि 12 प्रतिशत घरों में राशन कार्ड है ही नहीं और वितरण तंत्र कार्य नहीं करता है.
झारखंड के लातेहार जिला में सोनमति एक ऐसी ही पीड़ित आदिवासी महिला है. उसका कहना है कि उसके पुराने राशन कार्ड के बदले में उसका नया राशन कार्ड बना ही नहीं. वह कहती है कि राशन कार्ड
नहीं होने के कारण उसे योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. वह अपना राशन बाजार से खरीदने को मजबूर है. साथ ही वह यह भी कहती है कि जब वह राशन नहीं ला पाती है तब अपने बच्चों के साथ भूखे ही सो जाती है. बता दें कि सोनमति का राशन कार्ड इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि वह उसे अपने आधार कार्ड से लिंक नहीं कर पाई. यह भी बता दें कि आदिवासी महिला सोमवति झारखंड के लातेहार जिला के उस दुर्गम इलाके में रहती है जहां मूलभूत सुविधाएं हैं ही नहीं. वहां न तो सड़क है और न ही आंगनबाड़ी. स्वास्थ्य के नाम पर कुछ भी नहीं है और बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल भी नहीं है. सोनमति के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को भोजन भी बमुश्किल मिल पाता है.
नवंबर 2018 में नरेगा सहायता केंद्र द्वारा 325 घरों में किए गए सर्वे में पता चला कि लातेहार के मनिका और सतबरवा ब्लॉक के 43 प्रतिशत लोग प्राय: भूखे ही सो जाते हैं. ऐसी परिस्थिति में जिंदा रहने के लिए दो चीजें महत्वपूर्ण हैं – पहला सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत भोजन और दूसरा सामाजिक सुरक्षा पेंशन. झारखंड में NFSA के लागू होने के बाद अगस्त से अक्टूबर 2016 के बीच राज्य सरकार ने ‘पेपरलेस’ सार्वजनिक वितरण प्रणाली की शुरुआत की. इस सिस्टम के तहत वास्तविक लाभार्थियों को पहचाना जाना था. ऐसे सभी लोगों के बारे में जानकारियां इकट्ठा कर उनके आधार नंबर को बायोमीट्रिक सिस्टम से जोड़ा जाना था. तब खाद्य और सार्वजनिक वितरण सचिव विनय कुमार चौबे ने कहा था कि सरकार ने यह कदम फर्जी कार्ड धारियों को पकड़ने और उनके फर्जी कार्ड जब्त करने के लिए उठाया है.
केंद्र सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए फरवरी 2017 में एंड-टू-एंड कम्प्यूटरीकरण की शुरुआत की. आधारा कार्ड का प्रमाणीकरण 30 जून तक पूरा करने के लिए 8 फरवरी 2017 को
अधिसूचना जारी की गई. आधारकार्ड का प्रमाणीकरण पूरा नहीं करने की सूरत में लाभार्थी का नाम हटा दिया जाना था. ऐसे में आधार आधारित बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण (Aadhaar Based Biometric Authentication या ABBA) की प्रक्रिया और भी जटिल जटिल हो गई. यानि आधार को लिंक करने की आसान लगने वाली प्रक्रिया में कई सारी बाधाएं हैं.
लातेहार की आदिवासी महिला सोनमति के लिए यह सब कर पाना किसी भी तरह से आसान नहीं था. आधार कार्ड होने के साथ उसका सरकार द्वारा निर्देशित सिस्टम के साथ लिंक होना महत्वपूर्ण है. लेकिन भ्रम और जानकारी के अभाव में लोगों के मौलिक सुख-सुविधाओं में कटौती हो गई है. लातेहार की सोनमति इसका जीता जागता उदाहरण है.
बता दें कि आधार कार्ड को लिंक करने में असफल रहने के कारण सोनमति और भी कई तरह की सरकारी योजनाओं का लाभ पाने से वंचित है. सरकार की पेंशन योजना उसमें से एक है. सोनमति की बेटी
रीमा को तीन साल पहले ही पेंशन मिलना बंद हो गया. इस बारे में सोनमति ने कहा कि तीन साल पहले तक पेंशन मिला करता था. फिर उसने आगे कहा कि हम अनपढ़ लोग नहीं जानते कि पेंशन मिलना बंद क्यों हो गया.